ओडिशा में मोदी और पटनायक के बीच ही मुकाबला, राहुल इससे दूर


आशुतोष मिश्रा, भुवनेश्वर.ओडिशा के हाई वोल्टेज चुनावी समर में केंद्र का राज्य से और मोदी का पटनायक से मुकाबला ही मुद्दा है। ये दोनों ही नेता भाजपा और बीजद के पोस्टर-बैनरों पर छाए हैं। इनके मुकाबले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पोस्टर भुवनेश्वर व कटक में काफी कम हैं। गांवों में भी लोग मोदी व पटनायक की संभावनाओंकी चर्चा कर रहे हैं। राहुल इन बहस से दूर हैं। 19 सालों से मुख्यमंत्री बीजू जनता दल (बीजद) के अध्यक्ष नवीन पटनायक 2014 में मोदी लहर को ओडिशा में रोकने में कामयाब रहे थे। बीजद ने यहां की 21 में से 20 लोकसभा सीट जीती थी। एक सीट भाजपा को मिली थी और कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकी थी।

पटनायक फिर इस प्रदर्शन को दोहराना चाहते हैं, लेकिन इस बार भाजपा भी ओडिशा में कमल खिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। दोनों दलों के बीच पहले से ही आरोप-प्रत्यारोप शुरू थे और अब ये और तेज हो रहे हैं। बीजद ने मोदी पर जानबूझकर राज्य को नजरअंदाज करने और विशेष दर्जे की मांग पूरा नहीं करने का आरोप लगाया है। जबकि भाजपा मुख्यमंत्री को झूठा करार देते हुए केंद्र के साथ सहयोग नहीं करने का हवाला दे रही है। पटनायक ने राज्य को वित्तीय स्वायत्तता देने की मांग भी रख दी है। बीजद सचिव बिजय नायक कहना है कि केंद्र हमारी मदद नहीं कर सकता तो उसे हमें वित्तीय स्वायत्तता देनी चाहिए। हम अपने पैसे से अपना काम चला लेंगे।

राज्य सरकार और केंद्र मसलों को लेकर टकरा भी रहे हैं। प्रधानमंत्री ने हाल के दौरे में केंद्रीय आयुष्मान भारत योजना की बजाय बीजू स्वास्थ्य कल्याण योजना लागू करने पर पटनायक सरकार की आलोचना की है। बीजद नेताओं का कहना है कि उनकी योजना केंद्रीय योजना की तुलना में ज्यादा बेहतर है और उसकी पहुंच भी ज्यादा है। भाजपा नेता और पदमपुर के विधायक प्रदीप पुरोहित का कहना है कि ओडिशा सरकार केंद्र की योजनाओं को नजरअंदाज कर रही है। इससे राज्य के लोगों का ही नुकसान होगा।

नवीन पटनायक ने किसानों के लिए कृषक असिस्टेंस फार लाइवलीहुड एंड ऑगमेंटेशन (केएएलआईए) योजना शुरू की है। इसमें बंटाई पर खेती करने वाले व भूमिहीन कृषि मजदूर भी शामिल हैं। लेकिन, वह केंद्र की पीएम किसान योजना को लागू करने में हिचकिचाते रहे और कई बार कहने के बाद ही लाभान्वित किसानों की सूची केंद्र को भेजी। केंद्र व राज्य के बीच बढ़ते मतभेद ही इस चुनाव का मुख्य मुद्दा है। बीजद इसे राज्य के सम्मान से जोड़ रही है। बिजय नायक कहते हैं कि नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक ने उड़िया सम्मान की लड़ाई लड़ी थी। मुख्यमंत्री भी पिता के पद चिन्हों पर चल रहे हैं। लोग उन्हें फिर समर्थन देंगे।

राज्य में क्षेत्र आधारित मुद्दे हैं। पश्चिम ओडिशा के पांच पश्चिमी संसदीय क्षेत्र कालाहांडी, बोलनगीर, संभलपुर, बारगढ़ और सुंदरगढ़ लगातार सूखे से प्रभावित हैं। यहां किसानों की आत्महत्याएं प्रमुख मुद्दा है। सरकार ने खुद माना है कि 2013 से 2018 के बीच 227 किसानों ने आत्महत्या की है। ज्यादातर पश्चिमी इलाके से हैं, जहां सिंचाई के संसाधन बहुत ही कम हैं।

कालाहांडी के कुछ हिस्सों को छोड़ दे तो यहां सिंचाई योजना नहीं है। 1340 करोड़ की गंगाधर मेहर लिफ्ट सिंचाई परियोजना शुरू नहीं हुई है। 15 जिलों में पानी देने वाला हीराकुंड बांध का जलस्तर महानदी पर छत्तीसगढ़ में बांध व बैराज बनने से प्रभावित हुआ है। दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे का विवाद पंचाट के सामने है।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने से विकट स्थिति हो गई है। कांग्रेस के पूर्व विधायक लतेन्दु महापात्रा कहते हैं कि हमारी सरकार मसले को हल करने की कोशिश करेगी। कटक समेत नौ तटीय लोकसभा क्षेत्रों में महानदी विवाद मुद्दा रहेगा। जाति ओडिशा में चुनावी मुद्दा नहीं रही। इस बार माओवादियों के प्रभाव वाले कंधमाल और कोरापुत के कुछ क्षेत्रों में जनजातियां सरकार के खिलाफ हो सकती हैं। सड़क संपर्क न होने और विकास की कमी की वजह से लोग नाराज हैं। उनकी जिंदगी मुश्किल हुई है, वे माओवादियों की हिंसा का भी शिकार हो रहे हैं। कांग्रेस के प्रभाव वाले इस आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस को फायदा हो सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आनंद मिश्रा कहते हैं कि चुनाव बीजद और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई है। यह दो व्यक्तियों (नरेंद्र मोदी और नवीन पटनायक) और उनके विकास के एजेंडे का संघर्ष भी है। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार बालाकोट हमले के बाद मोदी यहां ज्यादा पॉपुलर हुए हैं, लेकिन नोटबंदी व जीसएटी को आम लोगों ने पसंद नहीं किया है। जहां तक मुद्दों और पॉपुलरटी का सवाल है तो अभी पटनायक आगे दिखते हैं।

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Modi-Patnaik’s fight between Odisha and Rahul, away from it