यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर 500 साल से चर्चा; कई देशों में लागू करने की कोशिश, पर सब नाकाम


नई दिल्ली.कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के पांच करोड़ गरीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपए की न्यूनतम आय देने का वादा किया है। इसे ‘न्यूनतम आय योजना’ (न्याय) नाम दिया गया है और यह यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) से प्रेरित है। गरीबों की आमदनी बढ़ाने के लिए दुनिया का यह कोई पहला प्रस्ताव नहीं है। दरअसल, पहली बार ऐसा प्रस्ताव 1526 में बेल्जियम में लाया गया था। तब से अब तक अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में इसे पूरी तरह या टुकड़ों में लागू करने की कोशिश होती रही है। लेकिन सभी नाकाम ही रही।

राहुल ने कहा है कि देश के 20% गरीब परिवारों को यह राशि दी जाएगी। इस तबके में 12,000 रु. से कम आय वालों को इस योजना का लाभ मिलेगा। अगर किसी व्यक्ति की आय 6,000 रु. मासिक है तो उसे 12,000 रु. तक लाएंगे। इससे ज्यादा इस योजना के बारे में उन्होंने कुछ नहीं बताया है। भाजपा इसे झांसा देने वाली योजना कह रही है। हालांकि इस योजना की जड़ें अपने देश में भी पुरानी है।

2009 में गरीबी रेखा पर बनी तेंदुलकर समिति ने कहा था कि 5 लोगों के एक ग्रामीण गरीब परिवार को सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए हर माह 3905 रु. की जरूरत है और शहर में 4824 रु. की। इस हिसाब से 22% आबादी गरीब है। 2012 में रंगराजन समिति बनी। इसने आबादी के 29.5% (26 करोड़) लोगों को गरीब माना और गरीबी रेखा के लिए नया मानक तय किया। रंगराजन समिति ने गांवों के ऐसे परिवारों को गरीब माना जिनकी आय 4,860 रु. मासिक से कम है।

शहर के लिए यह रकम 7,035 रु. रखी गई। इसीलिए सवाल उठा कि कांग्रेस के वादे में हर महीने 12 हजार रु. से कम आय वालों को योजना का लाभ देने की बात कहां से आई? विशेषज्ञ कह रहे हैं कि देश में 2018 में प्रति व्यक्ति सालाना आय 1,13,000 (करीब 2,000 डॉलर) आंकी गई थी। अब कांग्रेस देश के 20% सबसे गरीब परिवारों की आय काे 2000 डॉलर के इस स्तर तक लाने की बात कर रही है। डॉलर के मौजूदा मूल्य के हिसाब से यह राशि सालाना करीब 1,44,000 रु. या 12,000 रु. मासिक होती है।

यूबीआई की मांग की सबसे अनूठी तस्वीर
स्विट्जरलैंड में 2016 में यूबीआई की मांग के लिए चले आंदोलन में लोगों ने वहां की आबादी के बराबर 5 सेंट के 80 लाख सिक्के इकट्ठा किए और सरकार पर दबाव बनाने के लिए संसद भवन के सामने बिखेर दिए। हालांकि जनमत संग्रह में 77% लोगों ने प्रस्ताव का विरोध किया। स्विस सरकार ने जनता से इस प्रस्ताव का विरोध करने की अपील की थी।

‘न्याय’ और यूबीआई में फर्क है
कांग्रेस की ‘न्याय’ यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) से प्रेरित है। दोनों में फर्क इतना है कि न्याय 20% गरीबों तक सीमित है, जबकि यूबीआई का लक्ष्य सभी गरीबों को इसके दायरे में लाना है। 2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे ऑफ इंडिया में यूबीआई की पेशकश की गई थी। इसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार कुल 950 योजनाओं चला रही है। इन पर जीडीपी का करीब 5% खर्च होता है। इन योजनाओं का विकल्प यूबीआई हो सकता है।

विचारक थॉमस मोर ने 16वीं शताब्दी में इंग्लैंड में बढ़ रही चोरी-डकैती रोकने के लिए यूबीआई की सिफारिश की थी

  • विकसित देशों में 16वीं शताब्दी से ही यूबीआई की चर्चा शुरू हो गई थी। सबसे पहले 1526 में जोहानस लूडोविकस वाइव्स ने बेल्जियम के ब्रुग शहर में इसका विचार रखा। बड़े विचारक जैसे- थॉमस मोर, थॉमस पेन, जॉन स्टूअर्ट मिल और बर्ट्रंड रसेल ने भी यूबीआई की वकालत की।
  • 16वीं शताब्दी में विचारक थॉमस मोर ने इंग्लैंड में चोरी-डकैती पर रोक के लिए यूबीआई की सिफारिश की। आज तकनीकी विकास और बढ़ती बेरोजगारी के कारण यूबीआई पर चर्चा उभरने लगी है।
  • 1970 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस पर कानून बनाने की कोशिश की थी। डेनवर और सिएटल जैसे शहरों में यूबीआई को लागू करने का ट्रायल भी किया था, पर सफलता नहीं मिल सकी।
  • 2016 में स्विट्जरलैंड में जनमत संग्रह कराया गया कि सबको 2,500 फ्रैंक हर महीने दिए जाना चाहिए या नहीं। 76.9% जनता ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। उनके अनुसार देश में मौजूदा सामाजिक कल्याण व्यवस्था उपयुक्त थी।
  • फिनलैंड में 2017-18 के बीच दो हजार लोगों पर 634 डॉलर प्रति माह देने का प्रोजेक्ट चलाया गया। इसके बाद लोगों के सेहत और जीवनशैली में सुधार देखा गया, पर इनमें से कोई भी अपने लिए काम ढूंढ़ पाने में कामयाब नहीं हुआ। जबकि काम ही योजना का मुख्य लक्ष्य था।
  • फरवरी 2019 में ‘डेवलपिंग इकोनॉमी में यूनिवर्सल बेसिक इनकम’ नाम से एमआईटी की रिपोर्ट छपी। इसमें यूबीआई के 3 प्रयोगों का उल्लेख किया गया है। ये प्रयोग भारत के मध्य प्रदेश के अलावा नामीबिया और ईरान में हुए। लेकिन इनके परिणामों का कोई आकलन नहीं हुआ। मध्यप्रदेश में चले प्रोजेक्ट के मामले में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर गाई स्टैंडिंग का मानना था कि इन परिवारों में बच्चों की स्थिति में खासा सुधार देखने को मिला।

न्याय के पक्ष में तर्क-महंगाई और नशा बढ़ने के सबूत नहीं मिले

न्याय से लोग नकारे हो जाएंगे
जवाब :
एलएसई के प्रोफेसर गाई स्टैंडिंग अपनी किताब ‘बेसिक इनकम’ में कहते हैं- इस आधार पर विरासत में मिली संपत्ति का भी विरोध किया जाना चाहिए, क्योंकि वो भी मुफ्त में मिलती है।

आय बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी
जवाब:
फ्रॉम एविडेंस टू एक्शन नामक युनिसेफ की रिपोर्ट का कहना है कि अफ्रीका में कैश ट्रांसफर प्रयोगों से मांग बढ़ने से रोजगार बढ़ते हैं। महंगाई बढ़ने का कोई प्रमाण नहीं मिला है।

शराब, तंबाकू पर खर्च बढ़ेगा
जवाब :
सुब्रमणियम स्वामी की अध्यक्षता में 2016-17 में किए गए इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया है कि सांख्यिकी तथ्य उपलब्ध नहीं हैं कि आय बढ़ने से शराब और तंबाकू पर खर्च बढ़ता है

इससे टैक्स बढ़ सकता है

जवाब :कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर न्याय योजना लागू होती है तो टैक्स की दरों में बढ़ोतरी हो सकती है। 0.1% अमीरों पर वेल्थ टैक्स और अमीर किसानों पर भी टैक्स लग सकता है।

देश को यूनिवर्सल बेसिक इनकम की जरूरत है! गरीब की दैनिक आय 20 साल में 78 रु. ही बढ़ी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘न्याय’ योजना के कारण यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) फिर चर्चा में है। 2016-17 के इकोनॉमिक सर्वे में भी इसको लेकर सिफारिश की गई थी। दरअसल आजादी के बाद से ही हमारी आर्थिक नीतियां गरीबों का जीवन स्तर उठाने में ज्यादा कारगर नहीं रही हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के मुताबिक भारत में दो दशक में गरीबों की दैनिक आय महज 78 रु. ही बढ़ पाई है।

न्यूतम आया

कृषि क्षेत्र में कमाई बढ़ने की दर 1983 में5.1% थी 2011 में2.7% रह गई

  • अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने अपनी किताब ‘एन अनसर्टेन ग्लोरी’ में भारत और चीन के उद्योग क्षेत्र में कामगारों की आय की तुलना की है। उन्होंने बताया कि 1981 में बेस आय अगर 100 रु. मासिक थी तो 1989 तक दोनों ही देशों में यह आय बराबर रही। पर 2005 में चीनी कामगार की मासिक आय 700 रु. पर पहुंच गई, जबकि भारत में यह मुश्किल से 150 रु. तक ही पहुंची।
  • कृषि क्षेत्र में भारत में कमाई बढ़ने की दर 1983 से 87 के बीच 5.1% प्रतिवर्ष रही। पर 1987 से 1993 के बीच यह घटकर 2.7% पर आ गई। 1993 से 1999 के बीच गिरावट बरकरार रही और यह दर 1.3% रह गई। 2000 से 2006 के बीच कमाई बढ़ने की दर मात्र 0.1% ही रह गई थी। 2006 से 2011 के बीच नरेगा की मदद से यह दर 2.7% पर आई पाई।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1993-94 में सांसद, विधायकों, उच्च अधिकारियों की रोज की औसत कमाई 530 रुपए से बढ़कर 2011-12 में 1052 रुपए हो गई। जबकि कृषि श्रमिकों की आय 120 रुपए से 170 रुपए पर ही पहुंच पाई। मशीन ऑपरेटर की आय 176 रुपए से 254 रुपए ही हो पाई। यानी दो दशक में बढ़त महज 78 रुपए की।

आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें


जब स्विट्जरलैंड में 80 लाख सिक्के इकट्‌ठा कर संसद के सामने बिखेर दिए…