नई दिल्ली (पवन कुमार).दुर्लभ बीमारी, कैंसर की नई दवाएं अथवा किसी अन्य बीमारी की कोई नई दवा, इन पर दुनिया के किसी भी देश में शोध और क्लीनिकल ट्रायल चल रहा हो, तो ट्रायल के दौरान ही वह दवा भारत लाई जा सकती है।अगर भारत सरकार को लगता है किवह दवा यहां मरीजों के लिए बहुत जरूरी है और उसका कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है तो बिना क्लीनिकल ट्रायल पूरे हुए ही उसे भारत में बनाने और मरीज को खिलाने की इजाजत दी जा सकेगी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले सप्ताह गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से इस व्यवस्था को कानूनी रूप दे दिया है।
न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स के नए नियम के मुताबिक किसी नई दवा का यदि दो चरणाें का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा हो और तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हो, ताे उस दौरान दवा का इस्तेमाल हो सकता है।यदि मरीज किसी अस्पताल में भर्ती है और इलाज करने वाले डॉक्टर कहते हैं कि इस बीमारी के इलाज के लिए कोई दवा किसी देश में तैयार हो रही है और दो चरण का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है तो उसी समय वह दवा भारत में बनाने की इजाजत सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) दे सकता है।
हालांकि वह दवा उसी मरीज को खिलाई जा सकेगी जिसके लिए दवा बनाने की इजाजत दी गई होगी। अभी तक नई दवा का तीन चरण का क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद दवा बनाने वाली कंपनी उस दवा को बाजार में उतारती थी,तभी आम मरीज को वह दवा मिल पाती थी।
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