निजामाबाद/तेलंगाना (शशिभूषण).टीआरएस के गढ़ उत्तरी तेलंगाना के निजामाबाद संसदीय क्षेत्र से मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता सांसद हैं। जगतियाल मंडल का लक्ष्मीपुर गांव इसी का हिस्सा है। गांव के पंचायत भवन पर जुटे किसानों के बीच बहस छिड़ी है। नौजवान गोपाल रेड्डी पस्पू (हल्दी) के दाम के बहाने बाजार, बागान, खेत और किसान की बातें ठेठ तेलुगु में बोल रहा था। बात एकबारगी सिर के ऊपर से तैर गई। इतना समझ में आया कि गोपाल तैश में है। मेरे तेलुगु भाषी ड्राइवर रामचंद्र ने टूटी-फूटी हिंदी में समझाया कि गोपाल कह रहा है कि देश में कैसी मार्केट इकोनॉमी चल रही है? जब हम कोई सामान खरीदने जाते हैं तो उस पर एमआरपी लिखा होता है। यानी दाम तय होता है। लेकिन किसान जब अपनी उपज बेचने जाता है तो बाजार फसल का दाम तय करता है।
दरअसल, गोपाल जैसे युवा ही तेलंगाना की राजनीति की पेशानी पर छलकता पसीना है। जगतियाल मंडल के लक्ष्मीपुर ही नहीं, निजामाबाद संसदीय क्षेत्र के तमाम गांवों के किसान पूरे सिस्टम पर हल्दी पोतने को उतारू हैं। सिस्टम के खिलाफ उन्होंने अनूठी बगावत छेड़ रखी है। इस बार थोक भाव में नामांकन भरे गए हैं। किसान नेता पी.तिरुपति रेड्डी का दावा था कि उनकी ओर से पर्चा भरने वालों की संख्या 500 तक पहुंचेगी। हालांकि यह आंकड़ा नामांकन के आिखरी दिन 25 मार्च तक 245 तक ही पहुंच पाया। फिर भी यह अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। स्क्रूटनी में यदि इनमें से आधे किसानों के भी नामांकन पत्र सही पाए गए तो 17वीं लोकसभा के चुनाव में संभवत: निजामाबाद संसदीय क्षेत्र इकलौता क्षेत्र होगा जहां ईवीएम नहीं, बैलेट से चुनाव की नौबत आएगी। ईवीएम, अधिकतम 64 प्रत्याशियों की संख्या रहने पर ही इस्तेमाल में लाई जा सकती है। नामांकन खारिज भी हुए तो भी सर्वाधिक नामांकन इसी संसदीय क्षेत्र में खारिज होंगे। जो भी हो, तेलंगाना का निजामाबाद संसदीय क्षेत्र इस चुनाव में इतिहास बनाने के मुहाने पर है।
हालात से वाकिफ केसीआर ने निजामाबाद की चुनावी सभा में किसानों से धैर्य बरतने, भाजपा व कांग्रेस की कठपुतली न बनने और चुनाव बाद समाधान की बात कही। कविता ने तो यहां तक कह दिया कि किसानों को नामांकन करना ही है तो वे वाराणसी और अमेठी से करें जहां से नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं। नामांकन करने वाले और हल्दी किसानों की अगुवाई कर रहे तिरुपति रेड्डी कहते हैं, यह निजामाबाद ही नहीं आसपास के कई संसदीय क्षेत्रों की आवाज है। तीन साल हो गए आवाज उठाते-उठाते। जब हम थक गए तो चुनाव लड़ने को ही विरोध का जरिया बनाया।
बीते फरवरी में प्रदर्शन करने पर मुकदमे लादे गए। केस भी हुए। हम क्या करें? एक एकड़ में हल्दी की खेती करने पर एक लाख की लागत आती है। 22-25 क्विटंल उपज होती है। दाम मिलता है 4500-5500 प्रति क्विंटल। दस साल पहले यहीं हल्दी 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल बिकती थी। किसान आज 15,000 रुपए प्रति क्विंटल की मांग कर रहे हैं। किसानों की यही मांग इस संसदीय क्षेत्र में जीत-हार का मार्जिन निर्धारित करेगी। उनके करीब 3 लाख वोट हैं। अधिकांश रेड्डी हैं। किसानों की मांग को भाजपा और कांग्रेस की ओर से हवा भी मिल रही है हालांकि किसान इन आरोपों को खारिज करते हैं। निजामाबाद संसदीय क्षेत्र के अधीन सभी सात विधानसभा क्षेत्रों पर टीआरएस का कब्जा है। जिस जगतियाल मंडल के किसान थोक में पर्चा भर रहे हैं वहां की सीट भी विधानसभा चुनाव में टीआरएस लंबे अंतर से जीती थी।
आदिलाबाद में भाजपा ने आदिवासी कार्ड खेला है। पार्टी ने यहां सोयम बाबू राव को प्रत्याशी बनाया है। आदिवासी लंबादाओं जाति को ट्राइबल नहीं मानते और उन्हें बाहर करने की मांग कर रहे हैं। विरोध इसलिए बड़ा है, क्योंकि सरकारी नौकरियाें का फायदा लंबादा ले लेते हैं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी रमेश राठौड़ लंबादा हैं। टीआरएस के प्रत्याशी यहां निवर्तमान सांसद जी. नागेश हैं।
पेड्डापल्ली सीट पर ‘शीत युद्ध’ की लहर है। सरकार के सलाहकार जी विवेकानंद ने टिकट न मिलने से टीआरएस छोड़ दी है। टिकट न मिलने के पीछे विवेकानंद और समाज कल्याण मंत्री कोपुल्ला ईश्वर के बीच झगड़ा चल रहा है। कांग्रेस ने यहां ए.चंद्रशेखर को टिकट थमाया है। बी.वेंकटेश नेटाकनी टीआरएस प्रत्याशी हैं तो एस कुमार भाजपा के उम्मीदवार। विवेकानंद का रुझान भाजपा की ओर है। कांग्रेस और भाजपा इस संसदीय क्षेत्र में एक-दूसरे से आगे निकलने और अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने में जुटे हैं।
करीमनगर वह जगह है, जहां टीआरएस की नींव पड़ी थी। 2001 में केसीआर ने यहीं से सिंह गर्जना रैली शुरू की थी। यहां से पी प्रभाकर कांग्रेस और बी िवनोद टीआरएस प्रत्याशी हैं। केसीआर इस क्षेत्र को अपने लिए शुभ मानते हैं। यहीं से उन्होंने किसानों के लिए रैयतू बंधु (प्रति एकड़ 8000 का अनुदान) स्कीम शुरू की। केसीआर यहां से तीन बार सांसद भी रह चुके हैं।
जहीराबाद क्षेत्रीय भाषाओं का संगम है। तेलुगु, मराठी, कन्नड़ और हिंदी का ज्ञान यहां राजनीति के लिए जरूरी है। कारण संसदीय क्षेत्र का भूगोल है। यहां टीआरएस के सांसद बीबी पाटिल भी मैदान में हैं। कांग्रेस ने आईटी सेल इंचार्ज मदन मोहन पर दांव खेला है तो भाजपा प्रत्याशी हैं बी लक्ष्मण रेड्डी। मेडक वह क्षेत्र है जो मिशन भागीरथ का बुनियादी इलाका है। 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, तब वे यहीं से सांसद थीं। कभी कांग्रेस के लिए सुरक्षित क्षेत्र में आज टीआरएस की जमीन है। के. प्रभाकर रेड्डी यहां टीआरएस उम्मीदवार हैं। मुकाबला काग्रेस के जी. अनिल कुमार से है। 2014 में केसीआर इसी संसदीय क्षेत्र से चुने गये थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सीट खाली की थी।
मौजूदा स्थिति: 6 सीटें टीआरएस के पास
कहां-क्या मुद्दे हैं?
- आदिलाबाद : सिरपुर पेपर मिल में स्थानीय लोगों की नियुक्ति, पोडू (खाली) जमीन पर आदिवासियों को खेती न करने देना जैसे स्थानीय मुद्दे हैं। लंबादा जाति को जनजाति का दर्जा दिए जाने पर विरोध है
- पेड्डापल्लै : यहां कोई स्थानीय मुद्दा प्रभावी नहीं है। टीआरएस यहां गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा के नारे के बूते मैदान में है। कांग्रेस टीआरएस को भाजपा की बी टीम बताकर प्रचार कर रही है।
- जहीराबाद : गन्ने और अदरक की खेती होती है। यहां दोनों उपज की वाजिब कीमत मुद्दा है। सिंगूर, निजाम सागर और श्रीराम सागर बांधों का पानी खेतों तक पहुंचाना भी चर्चा का विषय है।
- मेडक : यहां मलन्नासागर बांध निर्माण से विस्थापित होने वाले इसका विरोध कर रहे हैं।
क्यों टीआरएस का गढ़ का है यह क्षेत्र
उत्तरी तेलंगाना के निजामाबाद, आदिलाबाद, करीमनगर, जहीराबाद, पेडपल्लै व मेडक सीट तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के गढ़ गिने जाते हैं। तेलंगाना अलग राज्य निर्माण की मांग का यही सघन इलाका भी था। लोगों की स्मृतियों में यादें ताजा हैं। 2014 में सभी सीटें टीआरएस ने जीती थीं। मुख्यमंत्री बनने के पूर्व केसीआर मेडक से ही सांसद थे। यहां कहने को त्रिकोणीय लड़ाई है। लेकिन दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों को आधार माना जाए तो टीआरएस सबसे ताकतवर दिखती है।
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