बेकसूर होने के बाद भी परिजनों ने नहीं दी जमानत; 20 माह से जेल में था, हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक से कहा- घर छोड़ने जाएं


ग्वालियर.बेकसूर के बाद भी परिजनों केजमानत नहीं देने से कैदी करीब 20 महीने से सेंट्रल जेल में बंद था। जेल प्रशासन की ओर से उसकी मानसिक स्थिति काे देखते हुए मेडिकल रिपाेर्ट तैयार कराकर हाईकोर्ट में पेश की गई। हाईकोर्ट ने इसे आधार मानकर जेल अधीक्षक को आदेश दिए हैं कि युवक को घर तक छोड़कर आएं और सात दिन में रिपोर्ट पेश करें। यह कहानी है तानसेन नगर स्थित आरा मिल के रहने वाले सतीश जैन की। दरअसल, सतीश और उसके भाई राजेश जैन के खिलाफ फरवरी 2007 में हजीरा थाने में हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया गया था।

अक्टूबर 2007 में सत्र न्यायालय ने दोनों को इससे बरी कर दिया। लेकिन आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिवीजन पेश हुई ताे 13 जुलाई 2017 में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दोनों भाईयों को जमानती वाॅरंट से तलब किया। घरवालों ने बड़े भाई राजेश की जमानत तो भर दी लेकिन सतीश की 25 हजार रुपए की जमानत देने से इनकार कर दिया। इस कारण कोर्ट ने सतीश काे जेल भेज दिया। जनवरी 2019 में केंद्रीय जेल अधीक्षक मनोज साहू ने कोर्ट में आवेदन दिया, जिसमें सतीश की मानसिक स्थिति खराब बताई और उपचार के लिए जेएएच में भर्ती कराने की अनुमति मांगी।

मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के निर्देश : मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने जेल अधीक्षक से शपथ पत्र पर मेडिकल रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। रिपोर्ट में बताया गया कि सतीश को न सोने की बीमारी है।वह अनाप-शनाप बोलता है। इसलिए उसके बारे में फैसला लिया जाए। हाईकोर्ट में बुधवार को सुनवाई में सतीश की मेडिकल रिपोर्ट को देखते हुए जस्टिस संजय यादव और जस्टिस विवेक अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह उसे बिना जमानत भरवाए घर तक छोड़कर आएं और सात दिन के भीतर कोर्ट में रिपोर्ट भी पेश करें।

बड़े भाई ने कहा- बार-बार लड़ाई करता है, इसलिए जमानत नहीं दे रहे थे : 2007 से पहले सतीश की मानसिक स्थिति ठीक थी। झूठा केस लगने के बाद हम दोनों को लगभग ढाई महीने जेल में रहना पड़ा। इसके बाद से ही उसकी स्थिति खराब होती गई। कोर्ट ने तो मामले में बरी कर दिया लेकिन सतीश इस घटना से उबर नहीं पाया। आये-दिन लोगों से झगड़ना, तारीख पर कोर्ट नहीं जाना। इन सब आदतों के कारण ही हम उसकी जमानत नहीं भर रहे थे।

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