शशिभूषण, खम्मम.खम्मम से इलेंदू कोयला खदान की ओर जाने वाली सड़क से थोड़ी ही दूर शूबबूल के खेत दिखे। शूबबूल वही जो कागज बनाने में इस्तेमाल होता है। यहां किसान बातचीत में मशगूल दिखे। इन्हीं में से एक टी सीताराम थोड़ा गरजकर तेलुगु मिश्रित टूटी-फूटी हिंदी में बोले- जिन्हें हमने चुना था, वही धोखेबाज निकले। पता चला गुस्सा शूबबूल और यूकेलिप्टस का उचित दाम न मिलने काे लेकर है। यह गुस्सा तब है जबकि यहां मुफ्त में खेती के लिए बिजली और सालाना आठ हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से सरकारी सहायता दी जा रही है।
धोखेबाज कैसे निकले?…का जवाब देते हुए सीताराम बोले- इन्होंने लड़ाई लड़ने के बदले पाला ही बदल लिया। दरअसल, खम्मम जिले का सबसे बड़ा अफसोस यही है। कई गैर टीआरएस विधायक अब टीआरएस में आ चुके हैं। यानी सत्ताधारी दल के साथ।
आंध्र से सटे तेलंगाना के सीमावर्ती नगरकुरनूल, नलगोंडा, खम्मम और महबूबाबाद की हवा दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों मे सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति के अनुकूल नहीं थी। अलग तेलंगाना का उबाल भी यहां कभी नहीं रहा। यहां कम्मा जाति का सबसे अधिक प्रभाव है जिसका बड़ा तबका टीडीपी और वाईएसआरसीपी से जुड़ा रहा। विधानसभा चुनाव में टीआरएस को खम्मम, नलगोंडा में इसी वजह से उतनी मदद नहीं मिली, दूसरी बड़ी वजह शूबबूल किसानों का सवाल रहा।
शूबबूल की खेती कागज बनाने वाली आईटीसी भद्राचलम की पहल पर हुई थी। खेत में फसल 4 साल से खड़ी है। कंपनी को वन विभाग से 4500 रुपए टन की दर से कच्चा माल जा रहा है। किसानों को इस रेट पर फसल बेचने पर एतराज है क्योंकि घाटा 1200 से 1500 रुपए प्रति टन हो रहा है। कम कीमत से नाराज किसान 1 अप्रैल से आईटीसी भद्राचलम के गेट पर ही कच्चे माल के ट्रकों को राेकेंगे।
सेव फार्मर्स कमेटी के अध्यक्ष वी. श्रीनिवास कहते हैं, जिस पार्टी के मेनिफेस्टो में हमारा दर्द शामिल होगा उसी को वोट मिलेगा। नहीं तो हम भी पर्चा भरेंगे। निजामाबाद की तर्ज पर किसानों ने यहां 100 से ज्यादा नामाकंन खरीदे थे। यहां किसानों का एक गुस्सा और है। वो है खम्मम-देवरापल्ली ग्रीन फील्ड स्टेट हाइवे। इस प्रोजेक्ट में 10 मंडल की 2000 एकड़ जमीन जा रही है। विधानसभा चुनावों में टीआरएस खम्मम जिले की पांच सीटों में से सिर्फ एक सीट जीत पाई थी।
यहां बस स्टैंड के पास चाय की दुकान पर लोग बहस में जुटे थे। खांटी तेलुगू में। मैंने दुकानदार श्रीनिवास से पूछा-लोग क्या कह रहे हैं? पूरी बात न बताते हुए भावार्थ समझाते हुए बोला- टीआरएस के लिए यहां हवा विपरीत है। पार्टी ने यहां पोलित ब्यूरो मेंबर नामा नागेश्वर राव को टिकट दिया है। नामा की गिनती देश के सबसे धनाढ्य नेताओं में होती है। उनके सामने कांग्रेस ने रेणुका चौधरी को उतारा है वे 2004 का चुनाव यहां से जीत चुकी हैं। दोनों कम्मा बिरादरी से हैं। अंतर बस यह है कि नामा का घर खम्मम में है तो चौधरी का घर अब आंध्रप्रदेश में।
नलगोंडा में कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष एन उत्तम कुमार रेड्डी को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस को विधायकों के पाला बदलने से झटका लगा है। उत्तम, हुजूरनगर के विधायक हैं। नलगोंडा के एक ओर नगरकुरनूल है तो दूसरी ओर खम्मम संसदीय क्षेत्र। कांग्रेस ने उत्तम को चुनाव इसीलिए लड़ाया है कि असर आजू-बाजू की सीटों पर भी पड़ेगा।
नगरकुरनूल में कांग्रेस ने इस बार प्रत्याशी बदल दिया है। नंदी इलैया की जगह प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष मल्लू रवि पर दांव खेला है। संसदीय क्षेत्र के सात में से छह विधानसभा क्षेत्रों पर टीआरएस के विधायक हैं। इतना ही नहीं, सातवीं सीट कोल्लापुर से जीते बी हर्षवर्धन रेड्डी भी अब टीआरएस में हैं। इलाके में प्रभाव रखने वाली पूर्व मंत्री डीके अरुणा भी कांग्रेस से नाता तोड़ चुकी हैं। अरुणा अब महबूबनगर संसदीय क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी हैं।
महबूबाबाद में टीआरएस और कांग्रेस के बीच लड़ाई सीधी है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को यहां सात में से 4 सीटों पर सफलता मिली थी। इनमें से दो कांग्रेसी विधायक पाला बदल टीआरएस की ओर आ चुके हैं। उधर, भोंगीर सीट पर मुख्य मुकाबला टीआरएस के मौजूदा सांसद बी. नरसैया गौड़ और कांग्रेस के के. वेंकट रेड्डी के बीच है। टीआरएस सांसद जहां केसीआर के भरोसे हैं तो कांग्रेस की उम्मीद गुटबाजी खत्म होने पर टिकी है।
वारंगल का नाम कभी हनामकोंडा हुआ करता था। छठवीं और सातवीं लोकसभा में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव यहीं से जीते थे। कभी चरम नक्सली गतिविधियां झेलने वाले इस इलाके के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में टीआरएस की मजबूत पकड़ है। यहां भी सीधी लड़ाई टीआरएस और कांग्रेस के बीच ही है।
सबसे बड़ा फैक्टर क्या रहेगा?
मुद्दे जो सबसे असरदार होंगे?
- केसीआर : यहां चर्चा है सर्वाधिक सांसद होने के बावजूद केसीआर तेलंगाना को कुछ नहीं दिला पाये। उन्होंने भाजपा से हाथ मिला रखा है। वहीं, टीआरएस यहां गैर-भाजपा, गैर-कांग्रेस सरकार बनाने के लिए समर्थन मांग रही है।
- पानी : नगरकुरनूल सीट टीआरएस कभी नहीं जीत पाई। 2009 और 2014 के चुनाव में पार्टी यहां दूसरे स्थान पर थी। इस बार टीआरएस को उम्मीद है कि सीट उसकी झोली में आएगी क्योंकि महात्मा गांधी कलवाकुर्थी लिफ्ट इरिगेशन से खेतों तक उसने पानी जो पहुंचाया है। पार्टी यहां अपनी सिंचाई योजनाआें के अलावा शादी मुबारक जैसी योजनाओं का जमकर प्रचार कर रही है।
- आरक्षण : कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष उत्तम कुमार रेड्डी कहते हैं सवर्ण आरक्षण के लिए संविधान संशोधन की तर्ज पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की सीमा 6 से बढ़ाकर 10% की जाएगी। दरअसल यह वादा मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का था जो अब तक पूरा नहीं हो सका है।
इस बार यहां टीडीपी और वाईएसआरसीपी नहीं होंगे
- यहां टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस (जगन रेड्डी) का भी सीमित प्रभाव रहा है। दोनों दल इस बार तेलंगाना में चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। टीडीपी ने तेलंगाना में कांग्रेस को अघोषित समर्थन दे रखा है। लिहाजा दक्षिणी तेलंगाना में टीआरएस का मुकाबला कांग्रेस से है।
- प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को तेलंगाना में थे। मोदी ने तेलंगाना में भाजपा के लाेकसभा चुनाव अभियान का शुभारंभ किया। केसीआर पर जमकर हमले किए। उन्हें वंशवाद का चेहरा बताया।
2014 की स्थिति
सीट |
विजयी दल |
खम्मम |
वाईएसआर कांग्रेस |
नलगोंडा |
कांग्रेस |
महबूबाबाद |
टीआरएस |
नगरकुरनुल |
कांग्रेस |
वारंगल |
टीआरएस |
भोंगिर |
टीआरएस |
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